रायपुर | CGSB NEWS-
छत्तीसगढ़ की राजधानी में मोहल्लों के पास खोले गए हमर क्लिनिक अब अपने उद्देश्य से भटकते नज़र आ रहे हैं। बेहतर प्राथमिक इलाज देने की जगह ये केंद्र सिर्फ दवाई बांटने का अड्डा बनते जा रहे हैं।
मुख्य प्रश्न उठते हैं:
क्या बिना डॉक्टर और जांच सुविधा के क्लिनिक चलाना जनहित में है?
क्या नर्सों पर इलाज की ज़िम्मेदारी डालना सुरक्षित और नैतिक है?
क्या गरीब और मध्यम वर्ग सिर्फ दवा पाने के लिए कतार में लगते हैं?
ज़मीनी हकीकत:
कुशालपुर सहित कई हमर क्लिनिकों में डॉक्टर मौजूद नहीं हैं
नर्सें ही डॉक्टर की भूमिका निभा रही हैं — दवा लिख रही हैं, मरीजों को सलाह दे रही हैं
किसी तरह की मेडिकल जांच सुविधा उपलब्ध नहीं — न ब्लड प्रेशर, न शुगर टेस्ट
बुखार, सिरदर्द, खांसी जैसे लक्षणों पर सिर्फ सामान्य दवा देकर भेज दिया जाता है
गंभीर मरीजों को कहा जा रहा है — “बाहरी अस्पताल में दिखाइए”
नर्सें दबाव में:
डॉक्टर न होने से नर्सें बिना पर्याप्त अधिकार और प्रशिक्षण के इलाज कर रही हैं
किसी भी गलत इलाज या लापरवाही की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर डाल दी जाती है
वे प्रशासनिक आदेशों के पालन में फँसी हुई हैं, जबकि स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहा है
प्रशासन की स्थिति:
सीएमएचओ ने राज्य शासन को डॉक्टरों की भर्ती के लिए पत्र भेजा
अब तक कोई मंजूरी या नियुक्ति नहीं
रायपुर के 50 से अधिक हमर क्लिनिकों में अधिकतर डॉक्टरविहीन हैं
कई क्लिनिकों में दवाएं भी समय पर नहीं पहुँच रहीं
मरीजों की निराशा:
नरेश साहू (कुशालपुर निवासी) तीन दिन से बुखार से पीड़ित थे
इलाज के लिए क्लिनिक पहुंचे तो डॉक्टर नहीं मिले
नर्स ने बिना जांच दवा दी और कहा — “बाहरी अस्पताल में दिखाइए”
बड़ा सवाल:
क्या सरकार ने हमर क्लिनिक की कल्पना सिर्फ कागजों पर की थी?
क्या यह स्वास्थ्य सेवा है या मरीजों की अनदेखी का सिलसिला?
क्यों नहीं मिल पा रही डॉक्टरों की स्थायी नियुक्ति?