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छत्तीसगढ़ वन विभाग का 11 साल पुराना ‘क्लोनिंग’ दावा फेल – दीपआशा निकली मुर्रा भैंस, वन्यजीव प्रेमियों में रोष

CGSB NEWS | भ्रष्टाचार = राष्ट्रद्रोह घोष‍ित हो

रायपुर – छत्तीसगढ़ वन विभाग एक बार फिर विवादों में है। 11 साल पहले वन विभाग ने दावा किया था कि उसने दुनिया का पहला “वन भैंसा” क्लोन कर लिया है। इस क्लोन को “दीपआशा” नाम दिया गया था और इसे उंदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व की मादा वन भैंसा ‘आशा’ की कोशिकाओं और दिल्ली के एक बूचड़खाने से लिए गए अंडाशय की मदद से तैयार किया गया था। लेकिन अब इस दावे पर खुद वैज्ञानिक संस्थाएं ही सवाल खड़े कर रही हैं।

करोड़ों खर्च, मगर परिणाम शून्य

12 दिसंबर 2014 को नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टिट्यूट (NDRI) करनाल में पैदा हुई दीपआशा की क्लोनिंग प्रक्रिया में लगभग ₹1 करोड़ खर्च किए गए। बाद में उसे 28 अगस्त 2018 को नया रायपुर स्थित जंगल सफारी लाया गया, जहां उसके लिए ₹2.5 करोड़ की लागत से विशेष बाड़ा बनाया गया। लेकिन आज, 7 साल से यह भैंस जंगल सफारी में कैद है और आम लोगों को दिखाया भी नहीं जाता – केवल वीआईपी दर्शनों के लिए सीमित रखा गया है।

डीएनए रिपोर्ट आई नहीं, लेकिन सच्चाई उजागर

दीपआशा वन भैंसा है या घरेलू मुर्रा भैंसा – यह जानने के लिए कुछ साल पहले उसका डीएनए सैंपल हैदराबाद की सीसीएमबी और देहरादून की वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को भेजा गया था, लेकिन रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई। आरोप है कि पोल खुलने के डर से रिपोर्ट दबा दी गई है।

मार्च 2025 में वन विभाग ने सीसीएमबी से तकनीकी सवाल किया – क्या बूचड़खाने से प्राप्त अंडाशय की मदद से जंगली भैंस की हूबहू क्लोनिंग संभव है?
इस पर सीसीएमबी ने स्पष्ट किया कि आज की तकनीक से न तो माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए और न ही न्यूक्लियर डीएनए को पूर्णतः डोनर जानवर से मेल कराया जा सकता है। यानी, तकनीकी रूप से वन भैंसा का क्लोन बनाना संभव नहीं था।

सवालों के घेरे में वन विभाग

वन्यजीव प्रेमियों का सवाल है कि जब यह तकनीकी जानकारी पहले से मौजूद थी, तो करोड़ों खर्च कर यह प्रयोग क्यों किया गया? 11 साल बाद इस प्रकार के सवाल उठाना दर्शाता है कि विभाग खुद भी अब असहज स्थिति में है। डीएनए रिपोर्ट यदि सार्वजनिक हो गई, तो विभाग की भारी बदनामी हो सकती है।

दीपआशा को आज़ाद करने की मांग

रायपुर निवासी और लंबे समय से इस मामले में संघर्ष कर रहे नितिन सिंघवी का कहना है कि दीपआशा साफ़ तौर पर मुर्रा भैंस है, जिसे ज़बरदस्ती जंगल सफारी में कैद कर रखा गया है। चिड़ियाघरों में घरेलू मवेशियों को रखने की अनुमति नहीं होती, फिर भी उसे वहां रखा गया है।

सिंघवी ने आरोप लगाया कि उन्होंने बार-बार डीएनए टेस्ट रिपोर्ट की मांग की, परंतु वन विभाग ने इसे टाल दिया। उनका कहना है – “अगर दीपआशा वन भैंसा नहीं है तो उसे कैद में क्यों रखा गया है? क्या विभाग को उसकी कैद से कोई ‘मनोरंजन’ मिल रहा है?”

निष्कर्ष

11 साल पहले किया गया वन विभाग का वन भैंसा क्लोनिंग दावा अब संदेह के घेरे में है। ना सिर्फ करोड़ों की सरकारी राशि बर्बाद हुई, बल्कि एक मवेशी ने अपनी आधी ज़िंदगी सलाखों के पीछे गुजार दी। अब जबकि सीसीएमबी ने तकनीकी तौर पर इसे असंभव बताया है, तो सवाल उठता है – क्या छत्तीसगढ़ वन विभाग इस गलती को स्वीकार करेगा? या एक और वन्यजीव राजनीति का शिकार बनेगा?

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